About the Journal (JVP)

JYOTIRVEDA PRASTHANAM (JVP)

A PEER REVIEWED RESEARCH JOURNAL OF SANSKRIT

UGC CARE LISTEDISSN – 2278 – 0327PUBLISHED EDITIONS
RNI – MPHIN/2013/61414
CHIEF EDITOR
DR.P V B SUBRAHMANYAM, PROFESSOR,
BHOPAL CAMPUS
CENTRAL SANSKRIT UNIVERSITY 
BHOPAL – 462043 (MP)
e.mail – lagdha@gmail.com, Mob – 9805034336
 EDITOR
ROHIT PACHORI   
Jyotishacharya (Phalit & Siddhant)
L 108, Sant asharam Ph.3 Laharpur, Bhopal – 43
e.mail – pachori.royal@gmail.com,
mob – 9752529724

लेखक के लिये निर्देश

शोधपत्र की प्रति bharatiyajyotisham@gmail.com पर भेजें। अधिक जानकारी हेतु सम्पादक की दूरवाणी पर सम्पर्क कर सकते है। प्रकाशन से सम्बन्धित जानकारी व शिकायत आदि का आदान प्रदान इसी ईमेल से करने का कष्ट करें।

  • पत्र प्रकाशन हेतु इस आशय के साथ स्वीकार किये जायेंगे कि वे किसी अन्य स्थान पर प्रकाशित नहीं हुए तथा प्रकाशन हेतु किसी अन्य के द्वारा स्वीकार नहीं की गए। अतः इस सम्बन्ध में लेखक अवश्य ध्यान दें।
  • व्यक्तिगत गोपनीयता की सुरक्षा पर लेखक अवश्य ध्यान दें।
  • पत्र का शीर्षक पुट शीर्षक, लेखक, सम्बद्ध संस्था, तथा सम्पर्क विवरण के साथ होना चाहिए।
  • यह माना जाता है कि लेखक स्वीकारता है कि पत्र प्रकाशन हेतु प्रस्तुत करते ही पत्र प्रकाशन से सम्बन्धित अधिकार प्रकाशक के अधीन हो जाते है।

पुनरीक्षण

निपुण तथा क्षेत्र के प्रसिद्ध गणमान्य लोगों के द्वारा पुनरीक्षण कराने का मुख्य उद्देश्य होता है ज्योतिर्वेद प्रस्थानम् में प्रकाशन हेतु प्रस्तुत शोध पत्र स्तरीय हो।

प्रकाशन के पूर्व में निम्न बिन्दुओं पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

  1. प्रकाशन हेतु समर्पित शोध पत्र विशेषज्ञों को अग्रेसित किये जाते है।
  2. पत्र का स्तर परीक्षण का दायित्व इन निरीक्षकों को स्वतन्त्ररूप से प्राप्त है। अर्थात् वे निष्पक्ष पुनरीक्षण हेतु स्वतन्त्र है।
  3. लेखन प्रक्रिया में प्रयुक्त प्रविधियों के अवलोकन के पश्चात् पुनरीक्षक अपना अभिमत प्रस्तुत करते है। उस अभिमत के आधार पर पत्र को स्वीकारने व पुनरावलोकन हेतु भेजने व तिरस्कृत करने का कार्य किया जाता है।
  4. इस समय ज्योतिर्वेदप्रस्थानम् (JVP) का अन्तर्जालीय तथा मुक्त पुनरीक्षण कार्य प्रारम्भ नहीं किये गये है। वर्तमान में पुनरीक्षण हेतु विशेषज्ञों की समिति घटित है जो इस कार्य को सम्पादित करती है। निकट भविष्य में अन्तर्जालीय पुनरीक्षण तथा मुक्त पुनरीक्षण कार्य प्रारम्भ करने का प्रयास किया जा रहा है।

प्रकाशन से सम्बन्धित मूल्यों का विवरण

शोध पत्र का स्वामित्व

पत्र लेखन में जिनका पूर्ण योगदान है उनको ही शोध पत्र का स्वामित्व प्राप्त है।

मूलरूप तथा नकलीकरण

लेखकों का निजी कार्य ही स्वीकार्य है तथा दूसरों के कार्यों को नाम बदलकर व अन्य माध्यम में प्रस्तुत करना पूर्णतः वर्ज्य है।

वस्तुनिक्षेत तथा उपलब्धता

पुनरीक्षण तथा सुलभ उपलब्धता हेतु लेखकों को अपने पत्र पर सभी अधिकार प्रकाशक के अधीन करने होते है। पत्र को प्रकाशन हेतु समर्पित करते ही पत्र पर अधिकार प्रकाशक के हो जायेंगे। यद्यपि लेखक के बौद्धिक सम्पत्ति से सम्बन्धित अधिकार सर्वदा नियमानुसार लेखक के साथ ही रहेंगे। लेखक के अतिरिक्त अन्य कोई सामग्री का उपयोग बिना सूचना नहीं कर पायेंगे।

एकल प्रकाशन

प्रकाशक अपने एक ही प्रकाशन को एक से अधिक स्थानों में व पत्रिकाओं में प्रकाशित नहीं कर सकते है। इस प्रकार के प्रवृत्तियों को रोकने का पूर्ण प्रयास प्रकाशक के द्वारा किया जाता है।

स्रोतों का उद्घोषण

अन्य लेखकों के लेखों से तथा अन्य स्थानों से लिये गये विषयों के सन्दर्भ में स्पष्ट उद्घोषण अपेक्षित है।

दोष निराकरण

लेखक प्रकाशनोपरान्त अथवा प्रस्तुति के पश्चात् यदि विषय में बुनियादी अथवा अन्य की दोष को अपने लेखन में देखता है तो यह उस लेखक का ही दायित्व बनता है कि वह इस विषय से प्रकाशक को अवगत करावें ताकि प्रकाशक उक्त दोष का निराकरण कर शुद्ध विषय का प्रकाशन कर सकें।

पत्रिका प्राप्ति के मार्ग

वर्तमान में पत्रिका का शुद्ध रूप से मुद्रण मात्र ही किया जाता है। निकट भविष्य में इसका अन्तर्जाल रूप प्रस्तुत करने का भी प्रयास किया जा रहा है। पत्रिका प्राप्ति हेतु निम्न संकेत पर सम्पर्क कर सकते है –

भारतीयज्योतिषम्

एल 108, संत आशाराम नगर फेज 3

लहारपुर

भोपाल – 462043

मध्यप्रदेश

मोबाइल – 9752529724

in brief

Sanskrit is known as a mere language now a days and propagated to so. This is known as devavani, i.e., the language or voice of gods. We have no proofs to prove it as a mere language. At the same time we have hundreds of chances to show it as non-detachable ingredient of this universe.

Jyotish is just known as fortune teller now days. When we overcome that assumption we can find that everything comes under Jyotish. The limbs of Vedapurusha have inter and intra connections among them and cannot be evaluated individually.

Keeping in view of the above perceptions, the bharatiya Jyotish, with the knowledge partnership of PPV Trust, started a journal in 2012. This magazine has been started in Hindi to give broader audience. 

Jyotirveda Prasthanam is a bimonthly Hindi Magazine started in 2012

l-108, Sant Asharam Nagar Phase-3, Laharpur Bhopal

Bhopal, Madhya Pradesh

Mission of this magazine is to encourage deep research in the field of Indian sciences and proper guidance to the coming generations in Indian sciences as well as to boost their morale to make goals high and achieve them.

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