प्रथम भाग
Title | Need of the hour – speeding up the multi dimensional thought process |
Author | Dr. Subrahmanyam PVB |
Abstract | There is no limit to development and Knowledge until and unless thought process stops. The speed and direction of thought may vary from person to person. The version of Seers from India hold a special status in this regard. The present paper throws some light on this aspect as well as the future prospects. |
आज हम बैलगाड़ी में चलने वालो को नहीं देखते हैं और हल चलाने वालों को भी नहीं देखते हैं। कणमर्दन अर्थात् फसल को काटने के बाद जब धान्य को फसल से घास से अलग किया जाता है वह कणमर्दन आज बैलों से करते हुए हम नहीं देखते हैं। हम घर चिट्ठी भी नहीं लिखते हैं हम कोई पत्र नहीं लिखते हैं और मोबाईल के बिना हम एक मिनट भी नहीं रह सकते हैं। मोबाईल में भी टच स्क्रीन वाला मोबाईल हमें चाहिए, एनड्राइड चलना चाहिए और उससे ऊपर की श्रेणी का मोबाईल हमें चाहिए और घर के जो तमाम वस्तु प्राचीन काल में चलते थे वे सब अब हमारे नजरों से दूर हैं।
अब वर्तन भी उस प्रकार के हम प्रयोग में नहीं लेते हैं और पानी पीने की विधा भी वह नहीं रहा एक दृष्टि से यदि बताया जाया तो समूल रूप से परिवर्तन हम देखते हैं। अपने जीवन में रहने की शैली हो या हाव भाव हो हरेक वस्तु में विज्ञान दखल दे चुका है और विज्ञान से ज्यादा तेजी से मानव मस्तिष्क अर्थात् चिन्तन विधि अपना नये नये आयामों को प्राप्त कर लिया है। उस दृष्टि में उस स्थिति में भूत भविष्य वर्तमान इन जानने की ये जो बाते हैं ये किसी के लिए भी मजाक लगते हैं । भविष्य यदि हम आज ही जान जाएँगे यदि हम ऐसे कहें तो वह वेबकूफी लगती है। और यदि वही हम आईन्स्टीन महोदय के नियम के अनुसार यदि ये कहें कि हम काल की गति से ज्यादा गति से यदि हम चले प्रकाश की गति से यदि ज्यादा गति से हम चलें तो हम भविष्य में भी जा सकते हैं और भूत में भी जा सकते हैं। तो कहते हैं कि हाँ वास्तव में आइन्स्टीन से जैसे जीनियस एक ही पैदा हुए थे और उनका यह सिद्धान्त सही है।
जब आप यह कहेंगे कि हम ऋतु परिवर्तन को वर्षा की स्थिति और गति को अथवा व्यक्ति के जीवन को अथवा व्यक्ति के शरीर में होने वाले विभिन्न रोगों को अथवा रोगों के निदानों को धान्यों के उपाजाऊ से समबन्ध हैं अर्थात् खेती से सम्बन्धित बातों को अथवा विपणी (व्यापार) से सम्बन्धित बातों को यदि इन बातों यदि इन बातों को हम ग्रहों के सम्बन्ध से यदि बताने की चेष्टा करें यदि हम स्वयं सोचे तो वे इस वैज्ञानिक युग में हास्यास्पद लगने लगता है। सरल जो भी वस्तु है वह सरलतम होते जा रहे हैं सूक्ष्म जो भी विधाएँ हैं वो सूक्ष्तम होते जा रहे हैं और पिछले कल का जो विकास था वो आज विकास नहीं कहलाता है और आने वाले कल में जो विकास होगा वो आज से ज्यादा रफ्तार में होगा उस स्थिति में वैदिक विज्ञान अथवा उस स्थिति में जो वैदिक चिन्तन उसका क्या प्रासङ्गिकता होगा। हम बारबार अपने अहं को शान्त करने के लिए अपने आत्माभिमान को बचाये रखने के लिए बहुत बार यह बात करते हैं के नहीं वेदों में सब था वेदों वे सब था वेदों में सब था सब है सब है तो है कहाँ और जब तक वह वैदिक सरल विधि जब तक वह वैदिक सूक्ष्म विधि और जब तक वह वैदिक विकास विधि विकास परम्परा आज के विज्ञान के नजरियों से नहीं दिखाया जायेगा तब तक क्यों आपके घर के ही लोग उसको स्वीकारेंगे तो आज हमारे सामने आवश्यकता क्या है आवश्यकता यही है कि वास्तव में आधुनिक विज्ञान के तहत जिन भी बिन्दुओं को विचार करने की बात होती है और जिन बिन्दुओं का विचार आधुनिक विज्ञान से असम्भव लगता है तो उन सभी बिन्दुओं की विचार की सम्भावना वैदिक वाङ्गमय से है यह आपको सिद्ध करना होगा। सिद्ध करने का तरीका आपको ढूंढना होगा।
आप तो नया आविष्कार नहीं करेंगे क्योंकि आविष्कार सभी महर्षियों के द्वारा किये हुए हैं और वे सूत्रबद्ध किए हुए हैं और अब समय है उन सूत्रों को आज के समय के हिसाब से सामने लाना होगा इसके लिए एक नए सोच की जरूरत है नए अध्ययन की जरूरत है तो इसका प्रारम्भ कहाँ होगा बाते तो सभी वही होंगे जो ग्रन्थस्थ हैं और सूत्र तो सभी वही होंगे जो आचार्यों के हैं, हाँ किन्तु उनका जो प्रयोग उनका प्रयोग आज के समय के हिसाब से होगा और यही हमारे सामने का एक बहुत बड़ा चुनौती है वैदिक वाङ्गमय से ही क्यों क्योंकि हम जानते हैं आज के विज्ञान के सामने भी बहुत एसे सवाल हैं जिनका हमें उत्तर नहीं मिल रहा है।तो वैदिक विज्ञान से ही क्यों क्योंकि वैदिक विज्ञान का एक वाक्य जो हमको सुनने को मिलता है-
प्रत्यक्षेणानुमित्या वा यस्तूपायो न विद्यते।
एनं विदन्ति वेदेन तस्मात् वेदस्य वेदता॥
जिसका प्रत्यक्ष अथवा अनुमान से जिसके लिए उपाय नहीं है जिस समस्या का समाधान नहीं है उसको वेद बताता है। वास्तव में यह बहुत बड़ी बात है। तो वास्तव में वेद ऐसे बता रहा है तो बता रहा है तो कहाँ पर बता रहा है उस वेद के जो अंग है ज्योतिष आदि जो अंग है उनके माध्यम से वेद क्या बताना चाह रहा है तो ये हमें हरेक क्षेत्र में टटोलने की आवश्यकता है औऱ यही एक कारण है जो हमें एक नये तरीके से नये सिरे से सोचने की एक प्रारम्भ करने का।
वेदों के उद्देश्य और भी एक हैं वेदों का परमोद्देश्य क्या है इष्ट की पूर्ति औऱ अनिष्ट का परिहार। यदि आपके साथ अथवा समाज के साथ अथवा किसी व्यक्ति के साथ यदि अच्छा होने वाला है तो उस अच्छापन को बढ़ाइये और यदि बुरा होने वाला है तो उसका परिहार कीजिए। अर्थात् उसको टालिए उसको समाप्त कीजिए। तो वेद ये कह रहा है तो इसका अर्थ क्या है आप आने वाले कल को जान सकते हैं औऱ जान के आज ही तैयारी कर सकते हैं और काल की उस गति को बदल सकते हैं।
जब वेद ऐसे कह रहा है तो हमें यहां दो ही रास्ते बचते हैं या तो हम उस वैदिक चिन्तन को सही सिद्ध करें आज के विज्ञान के तहत अथवा हम हाथ खड़ा कर दें हम ये कहें केवल ये कपोल कल्पना है यह केवल कल्पना मात्र है औऱ इसमें कोई सच्चाई नहीं है। तो अब हमने जिस प्रकार के क्षेत्रों को चुने हैं जैसे चिकित्सा क्षेत्र तो चिकित्सा में हमें आज भी पता है कि डाइग्नोसिस के नाम पे ही समय बीत जाता है और जब तक सही दवा दिया जाता है जब तक सही दवा देने के लिए डाइग्नोसिस किया जाता है तब तक स्थिति बिगड़ जाता है और यह डाइग्नोसिस और यह चिकित्सा की यह विधि रोग निर्धारण और निदान की यह विधि जो आज है जो बहुत लोगों के लिए वो खट्टे अँगूर हैं उनके बस का नहीं है। और उस विधि के कारण सामान्य जन जीवन अस्त व्यस्त हो रहा है जो परम्परागत जो परिवार हैं वे बिगड़ते जा रहे हैं और शारिरिक सुख मिल नहीं रहा है अस्पतालों की संख्या बढ़ती जा रही है, अस्पतालों में मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है, और ठीक होने वाले सुकून पाने वाले मरीजों की संख्या कम होती जा रही है। यह कोई आक्षेप नहीं है यही एक समस्या है समाज के सामने इस समस्या के समाधान के लिए हम कौन सा विकल्प सामने ला सकते हैं जब ग्रहों से रोग निर्धारण हो सकता है और ग्रहों से रोगों का निदान हो सकता है तो हम उस प्रकार का प्रयास हमें करना चाहिए तो इसी इसी एक बिन्दु को हम आधार के रूप में लिए हैं चिकित्सा ज्योतिष के नाम से औऱ दूसरी बात है कृषि विज्ञान।
अधिकांश कृषि समाप्त हो चुकी है अधिकांश फसल जो पहले होते थे नहीं हो रहे हैं पृथ्वी को जो उर्वरक बनाया जाए पृथ्वी को औऱ समृद्ध बनावें और इन्सान को और समृद्ध और ताकतवार औऱ शक्तिमान बनावें तो इस प्रकार के फसलों की आज तो बहुत कमी हो गई है केवल छिड़काव चढ़ाके केवल रसायनों का प्रयोग करके हम केवल ऐसे चल रहे हैं तो इस स्थिति में ये एक ऐसे मार्गदर्शन की अपेक्षा है कि किस प्रकार की कृषि करें कहां पर करें किस प्रकार से बाधाओं से प्राकृतिक बाधाओं से बचायें और वर्षा के ज्ञान के आधार पर उसको किस प्रकरा से और सफल बनायें और भूख को मिटायें। तो यह एक कृषि विज्ञान में ज्योतिष का क्या योगदान हो सकता है उस दृष्टि से है अब भौतिक विज्ञान और ज्योतिष की जहां तक बात है हरेक पिण्ड में एक द्रव्यराशि कुछ लक्षण कुछ प्रवृत्तियाँ रहते ही हैं जैसे हम यह मेष राशि यह वृषराशि यह अमुक ग्रह इसकी यह प्रवृत्ति यह इस प्रकार से व्यवहार करेगा जो बाते करते हैं उसी प्रकार भौतिक विज्ञान के भी अर्थात् प्रकृति के अपने नियम हैं और उन नियमो से ही प्रकृति चलता है।
प्रकृति के अन्तर्गत उन नियमों के जिन्होंने सामने ले आए हैं डिस्कवर किए हैं न्यूटन कैप्लर आदि महोदय तो उनका ही देन है आज जो विज्ञान हम सामने देख रहे हैं और इन्ही सभी तत्त्वों के यदि आधार पर ग्रहों से हम यदि भविष्य जान रहे हैं अथवा भूत औऱ वर्तमान जान रहे हैं तो कहीं न कहीं तालमेल प्रकृतिगत उन सिद्धान्तों के साथ इन ग्रहों के चाल का और इस सृष्टि का और सृष्टि के बाद होने वाले विनाश का इन सभी का सम्बन्ध है यदि विज्ञान की बात मानें तो कोई भी चीज इत्तेफाक नहीं हो सकता है There is no coincidence यहां ऐसी स्थिति हो ही नहीं सकता है औऱ कर्म सिद्धान्त भी यही कहता है इत्तेफाक नामक कोई चीज नहीं है। इत्तेफाक तो हो ही नहीं सकता है तो हर चीज किसी न किसी कारण से घटित होता है। तो उस कारण को हम कर्म कहते हैं और हम कहते हैं कि वह संचित होता है वह किसी स्थान में स्टोर होता है और वह व्यक्ति का पीछा करता है तो यहाँ पर भौतिक विज्ञान ही है जो इसको सिद्ध कर सकता है और इस प्राचीन चिन्तन को सही सिद्ध कर सकता है तो इसीलिए हमें भौतिक विज्ञान और ज्योतिष के बीच में भी एक शोध करने की अपेक्षा है।
अब तीसरी बात है अर्थ सम्पत्ति आदमी इन्सान जहाँ शरीर से सुकून प्राप्त कर लेता है तो उसका दौड़ जीत के लिए रहता है उसकी एक पराकाष्ठा में दिमाग पहुँचना चालू हो जाता है। तो ऐसे ही चीजों से उत्पन्न होते हैं साम्राज्यवाद, और जो दो घर बनाया है वह तीसरा घर बनाना चाहता है, जो तीन घर बनायें हैं वह चार घर बनाना चाहता है और उनके पीछे आत्मसंतुष्टि रहती है जो 10 करोड़ है वह 12 करोड़ चाहता है तो इन सब चीजों को कौन चलाता है।भूमि के ऊपर हरेक अनाज हरेक प्रकार का अनाज हरेक प्रकार का वस्तु हरेक प्रकार की वनस्पति उसका एक मूल्य है औऱ जिस पदार्थ का मांग है उसका मूल्य बढ़ता जाएगा और प्रत्येक पदार्थ प्रत्येक वस्तु प्रत्येक वनस्पति को ग्रह प्रभावित करते हैं तो फिर यह बहुत साधारण सी बात है जाएगी जैसे पञ्चाङ्गो में लिखा जाता है अर्घ विचार जैसे पञ्चाङ्गों में लिखा जाता है कौन सी धातु किस समय में बढ़ेगी जैसे हम आजकल देखते भी हैं जब जब बृहस्पति वक्री होता है तब तब सोने के दाम आसमान छूने लगते हैं और पलेटिनम् के लिए कैसे दौढ़ लगता है कैसे चांदी खरीदने के लिए लोग क्यू लगाते हैं इत्यादि समस्त बातें। तो सम्पत्ति सम्पत्ति के चारों ओर इन्सान घूमता रहता है यदि जिन्दगी का कोई लक्ष्य है तो आज के समय में पूछिए तो एक कार एक गाड़ी और एक घऱ औऱ एक समृद्ध बीबी।
हर स्थान में हमारा लक्ष्य यही हो गया है तो इन लक्ष्यों के प्रति हमें प्रेरित कौन कर रहा है और इन भावों को कौन बढ़ा रहा है । और वो बढ़ने वाले या घटने वाले भावों के पीछे ग्रहों का क्या खेल हो सकता है तो ये सभी से जुड़ा हुआ है ये हरेक क्षेत्र से जुड़ा हुआ है यदि वह विज्ञान का क्षेत्र हो कृषि का क्षेत्र का हो मौसम का क्षेत्र हो चिकित्सा का क्षेत्र हो वह सम्पत्ति से ही जुड़ा हुआ है जो जिसके पास सम्पत्ति है वह अपने हृदय को भी बदलवा देता है और जिसके पास सम्पत्ति नहीं है वह बस हृदय में हाथ रख के काल का इन्तजार करता है
इस स्थिति में हमें एक चिन्तन बनाना है एक सोच बनाना है आखिर हम एक सरलतम मार्ग का खोज कैसे कर सकते हैं हम कोई नवीन खोज नहीं कर सकते हैं नवीनता नामक कोई चीज रहता नहीं है जो भी अस्तित्व में है उन्हीं का हम प्रयोग कर सकते हैं तो फिर बात वही हुआ हम पहले बैलगाड़ी में चलते थे बाद में कार में चलने लगे अब हवाई जहाज में चलने लगे हम उड़ने लगे पहले हम चिट्ठी लिखते थे और हमारे भावों को दूसरों तक पहुँचाते थे और उसके बाद हम चिट्ठी छोड़ दिए उसके बाद लेंडलाइन आया उसको छोड़ दिए मोबाईल आया उसको छोड़ दिए अब वीडियो कान्फ्रेसिंग आमने सामने ही हो जाते हैं दुनिया में कहीं भी हों।
अर्थात् हरेक विधा में हम सरल सरल सरलतर सरलतम होते जा रहे हैं और सूक्ष्म सूक्ष्मतम होते जा रहे हैं सूक्ष्म सूक्ष्मतम की कोई परिभाषा नहीं रह गई जो कल का सूक्ष्मतम है आज सूक्ष्मतर है क्योंकि उससे भी आगे हम बढ़ चुके हैं तो इसी दृष्टि से हमें एक दृष्टि बनानी है इसी दृष्टि से हमें एक आधार बनाना है और आज के विज्ञान के सरीक आधुनिक विज्ञान के सरीके हमें ज्योतिष में शोध के आयामों को ढूंढना है और ज्योतिष को समसामयिक बनाना है और मानव कल्याणोपयोगी बनाना है। तो इस दृष्टि से हम जिन क्षेत्रों का चिन्तन किये हुए हैं उन क्षेत्रो पर हमें विचार करना है। और इस विचार करने के लिए हमें प्रमाणिक ग्रन्थों को पढ़ना पढ़ेगा, और विभिन्न क्षेत्रों के ग्रन्थों को पढ़ना पढ़ेगा और विभिन्न क्षेत्रों के महनीय अर्थात् जो उत्कृष्ट कार्य किए हैं उन लोगों के जीवन के बारे में भी हमें समझना पढ़ेगा पढ़ना पढ़ेगा ।
यह सभी कार्य केवल एक बहुत बड़ी व्यवस्था बनेंतभी हो एसी बात नहीं है हम महर्षियों के व्यवस्थाओं के बारे में बहुत अच्छे ढंग से जानते हैं महर्षी जब भी ज्ञान की पिपासा होती है तो वे जंगल में चले जाते थे। और आज के समय में भी जितने वैज्ञानिक हैं उनके जब हम जीवनी पढ़ने लगते हैं तो समझ में आता है वह कितने कष्टो को झेलते हैं और सब त्याग कैसे करते हैं। तो यहाँ पर अध्ययन अधिकाधिक इसको आप एक्सक्लूजिब स्टडी कहिए यह इन्क्लूज़न नहीं है एक्स्क्लूज़िब मतलब सीमा नहीं है और हर जगह में आपको अपनी दृष्टि रखनी है। और हरेक वस्तु को अपनी दृष्टि से देखना है और जो भी विधाएँ पञ्चाङ्ग से लेकर पञ्चाङ्ग निर्माण से लेकर पञ्चाङ्ग के जो विभिन्न घटक हैं वह कृषि क्षेत्र को परामर्श देना हो चिकित्सा क्षेत्र को परामर्श देना हो विज्ञान क्षेत्र को परामर्श देना हो अथवा वित्त क्षेत्र को परामर्श देना हो जो पहले से आ रहे हैं पहले से वह परामर्श पञ्चाङ्ग में लिखित रूप में आते रहे हैं और दैवज्ञों की परम्परा में आते रहे हैं और जैसे वराहमिहिर जी के पाञ्चवी सदी के वराहमिहिर जी के वचनों को हम देखें तो राजा दैवज्ञ के बिना हो नहीं सकता है और राजा को सलाह देने के लिए कोई दैवज्ञ चाहिए होता है तो अब उस परामर्श की एक केन्द्र बनाने के लिए अर्थात् ज्योतिष को एक केन्द्र बिन्दु में ले आने के लिए अर्थात् समाज में यह समझाने के लिए कि जो हम असमंजस स्थिति में है उस असमंजस स्थिति में राह बताने के लिए ज्योतिष का प्रयोग कर सकते हैं वो इस प्रकार से वैज्ञानिक है और वह इस प्रकार से तर्कसंगत है इसको समझाने के लिए हमें एक व्यक्तिगत इच्छा के साथ एक विधा को बनाना होगा इसमें सरकार को कितना जोड़ाना है हमें ये बाद की बात है और हम सरकार से जुड़े हुए हैं ये भी एक बात है किन्तु इसमें जब तक व्यक्तिगत इच्छा जागृत नहीं होती है और व्यक्तिगत संकल्प समृद्ध नहीं होता है तब तक हम व्यवस्थाओं से अथवा विधि विधानों से हम कोई उम्मीद नहीं कर सकते हैं अतः हम निरन्तर प्रयास करते हैं अपनी दृष्टि को सूक्ष्म बनाने का, अपनी दृष्टि को सरल बनाने का ,और अपनी दृष्टि को समृद्ध बनाने का , और अपनी दृष्टि को विकासशील बनाने का और हमने शोध के लिए जिन क्षेत्रों को चुने हैं जिन बिन्दुओं को चुने हैं उनको प्रारम्भिक बिन्दु से पहचानने का प्रयास करते हैं इसके लिए हमें मार्गदर्शन की अपेक्षा है कक्षाओं की नहीं यदि हम प्रतिदिन तीन चार घंटे यदि बैठके हम किसी से स्थितियों को अध्ययन करते रहेंगे यदि हम ऐसे सोचेंगे तो फिर हमारी यह यात्रा अधूरा रह जाएगा।
यहां पर हमारे चिन्तन को जगाना है और यदि हम अभी हम 10 कि॰ मी॰ प्रति घंटे की यदि रफ्तार से दौड़ रहे हैं तो हमें 100 कि॰ मी॰ कर देना है हमारे सोच को और तेज करना है। आचार्य के हरेक वचनों को समझने की कोशिश करना है और यहाँ पर व्यक्तिगत परिमश्रम व्यक्तिगत अध्ययन ही बहुत महत्त्वपूर्ण है ।